Friday, September 26, 2008
Indian Flag Burnt in Srinagar
The only country of the world, where one can dare to burn the national flag..
All these become the masala breaking news of Indian news channels:
* If Tendulkar cuts the cake which is made to look like national flag, he is condemned.
* If Mandira Bedi wears a saree with the flags of all the countries being portrayed on that, is made to apologies.
* If one cop in Kolkata and one in Bangalore is terminated of his duties for throwing the Indian national flag on ground, by mistake.
Then why double standards:
* During the ongoing Amarnath Sangarsh, Jammuites holding the Indian National Flag and chanting 'Bharat Mata ki Jai' are open fired by the J&K Police on orders from the Police Commissioner(belongs to kashmir). Peaceful protesters are killed.
* Like in case of Amarnath case, people in Kashmir when want to get some demand fulfilled, protest by burning Indian national Flag, hosting Pakistani Flag and chanting 'Hindustan Murdabad, Pakistan Jindabad'. But no body condemns. Infact, all such protest are followed by a team of union ministers visiting Kashmir and immediately sanctioning a few thousand crore rupees for Kashmiris.
* Every year on 14th Aug (Pakistani Indipendence Day), Pakistani flag is hosted every where in Kashmir, including the govt. buildings and on 15th Aug, same people burn the Indian flag.
Thursday, July 24, 2008
राजदीप सरदेसाई ! जनता के अधिकार कि रक्षा करो!
मनमोहन सरकार ने अंतत: संसद में विश्वास मत प्राप्त कर ही लिया ये बात किसी से छुपी नहीं है की २७५ का आंकडा छूने के लिए उनके साथियों को क्या क्या नहीं करना पडा ये बात तब कन्फर्म हो गयी जब तीन सांसदों ने संसद में नोटों की गड्डियां लहरा कर दिखाई
राजदीप सरदेसाई ने अपने चेनल पर स्वीकार किया कि उनके पास रुपयों ले लेनदेन के सबूत मौजूद है लेकिन उन्हें प्रसारित नहीं किया गया
बिना सिरपैर की खबरें, वो भी बिना किसी सबूत के घंटों चलाने वाला इलेक्ट्रोनिक मीडिया, जो सनसनी फैलाने वाली खबरें ब्रेकिंग न्यूज़ के नाम से चलाने में क्षण मात्र की भी देर नहीं करता, कैसे इस प्रकार की अति महत्वपूर्ण ख़बर प्रसारित नहीं करने का निर्णय ले सकता है??
क्या अमन वर्मा, शक्ति कपूर जैसों के स्टिंग ओपरेशन क्या आम जनता के हित के विषय थे?? जिनकी जुगाली हमारे न्यूज़ चेनल कई दिनों तक करते रहे
राजदीप, आप पर पहले ही भाजपा विरोधी होने के आरोप लगते रहे है, ऐसे में आपका वोटों की खरीद फरोक्त के स्टिंग ओपरेशन को प्रसारित नहीं करने का निर्णय आपके दर्शकों को क्या संदेश देगा? क्या आपकी निष्पक्षता पर यह एक प्रश्न चिन्ह नहीं है? क्या जनता को सच देखने का अधिकार नहीं है? क्या आपका इस सच को उजागर करने का कर्तव्य नहीं है??
मुझे उम्मीद है कि आपको पद्मश्री या राज्यसभा की ख्वाइश नही है...
पाठकों! आपको क्या लगता है???
Monday, July 21, 2008
तरुण तेजपाल.. हमें इंतजार है...
करोडो की डील में छोटी मोटी असावधानी होना स्वाभाविक है और तहलका के लिए ये काफी है
मुझे उम्मीद है कि जल्द ही तरुण कोई सनसनीखेज तहलका करेंगें
तरुण ! हम इंतजार कर रहे है
Sunday, July 20, 2008
वर्त्तमान राजनीतिक स्थिति में महामहीम से अपील
पिछले कई दिनों से देखने में आ रहा है की मनमोहन सरकार को गिराने और बचाने के लिए घोडों की जो खरीद फरोक्त हो रही है, उसे रोका जाना चाहिए कल तक जो एक दूसरे की शकल देखना पसंद नहीं करते थे, आज गले में हाथ डालकर कैमरे के सामने हंस रहे हैं
सिंह सरकार विशवास मत जीते या हारे, अरबों रुपयों की डील (या हेरफेर ) जरूर होगी
यह न्यूक्लीयर डील देशहित में हो ना हो लेकिन इसके लिए परदे के पीछे हो रही डीलें देशहित में कदापि नहीं है
Wednesday, July 16, 2008
Thursday, June 19, 2008
हमारे देश में ब्रेकिंग न्यूज़ (Breaking News in India)
अर्थात " भारतीय मीडिया" के बारे में आपका क्या ख्याल है ??
What is your opinion about
Indian Media-The important Piller of world's largest Democracy ???
Tuesday, May 27, 2008
आरुशी हत्याकांड और पोलीस की जल्दबाजी
Monday, May 5, 2008
Sunday, May 4, 2008
राज ठाकरे का आन्दोलन
राज के विचारों के बारे में लोगों की अलग अलग राय है। ये अलग बात है कि कई लोग राजनीतिक कारणों से राज के समर्थन में नहीं बोल पा रहे है। पर मुम्बई ही नहीं वरन देश के सभी महानगरों पर हर रोज़ लाखों नए लोगों के भार से कई तरह की समस्याएँ उत्पन्न हो रही है।
अगर हम कुछ समय पहले दिल्ली की मुख्यमंत्री श्रीमती शीला दीक्षित का बयान याद करें, तो उन्होंने भी दिल्ली की व्यवस्था पर बाहरी लोगों के बढ़ते भार पर चिंता व्यक्त की थी। ये अलग बात है कि राजनीतिक दबाव के चलते उन्हें अपना बयान वापस लेना पडा था, पर इससे समस्या की गंभीरता स्पष्ट होती है।
राज ठाकरे के आन्दोलन को राजनीती से प्रेरित माना जा रहा है। जो धीरे धीरे प्रान्तवाद में परिवर्तित होता जा रहा है। मेरे विचार से इस प्रश्न को राजनीतिक प्रश्न न मानते हुए इसके मूल कारण का विचार करना चाहिए। और मूल प्रश्न है "रोजगार" ।
उत्तर प्रदेश हो या बिहार या कोई भी अन्य प्रांत, किसी भी व्यक्ति के महानगर की और रुख करने का एकमात्र कारण केवल रोजगार है। छोटे शहरों या गावों में जब तक रोजगार उपलब्ध नही होगा तब तक लोगों का शहरों की और पलायन जारी रहेगा।
लेकिन सरकार, मीडिया और राजनीतिक दल बजाय मूल प्रश्न को सुलझाने के अपने अपने तरीकों से स्वार्थ सिद्ध करने में लगे है। गावों में रोजगार के अवसर उत्पन्न करने में पिछली सभी सरकारें असफल रही है, ऐसे में जरुरत है नए तरीके से सोचने की।
उत्तर प्रदेश के एक युवा सामाजिक कार्यकर्त्ता श्री भारत गांधी के विचारों को इस समय गंभीरता से लिया जाना चाहिए। श्री गांधी ने गहन अध्ययन करके votership की संकल्पना की है । जिसके अनुसार देश के प्रत्येक मतदाता को उनके मतदान के एवज में 1750 रुपये दिए जाना चाहिए जिससे समाज के निचले स्तर तक पैसा पहुंचेगा और लोगों की खरीदने की क्षमता बढेगी। इस वोटर शिप को देने के लिए आवश्यक धन के लिए श्री गांधी की सलाह है कि सरकार वे सभी जनहित कार्यक्रम बंद कर दे जिसके द्वारा पैसा लोगों को बांटा जा रहा है। इससे ना केवल भ्रष्टाचार में कमी होगी वरन मतदान का प्रतिशत बढेगा, सीधे पैसा मिलाने से जनता का जीवन स्तर सुधरेगा, शहरों की और पलायन रुकेगा और भीक मँगाने, चोरी आदी अपराधों में भी कमी आयेगी । साथ ही मतदान आवश्यक होने से चुनाव में खर्च कम होगा। इस प्रस्ताव का अनुमोदन सभी राजनीतिक दलों के १०० से अधिक सांसदों ने कर लोकसभा के सभापती को प्रेषित किया है।
श्री भरत गांधी के प्रस्ताव को http://www.votership.com/ पर देखा जा सकता ।
Thursday, April 24, 2008
दूसरा पहलू
करीब १० मिनिट में आधे से अधिक सीटें भर चुकी थी। मैं आँखें बंद कर नींद को सहेजने की कोशिश कर रहा था। एक लड़की की "एक्सक्यूज मी " आवाज सुनकर मैंने आँखें खोली और उसे रास्ता देने के लिए खडा हुआ।
चेहरा जाना पहचाना लग रहा था। सोचने लगा... कौन है ये लड़की? कहाँ देखा है इसे? इसी बीच वो पास की विंडो सीट पर बैठ चुकी थी। मैंने भी बैठकर आँखें मूँद ली और याद करने लगा की इस लड़की को कहाँ देखा है?
अरे!!! ये तो शायद मोनिका बेदी है!!! मैंने आँखें खोलकर कन्फर्म करने के लिए उसकी और देखा... हाँ, मोनिका बेदी ही है ।
नींद उड़ चुकी थी, टीवी पर देखी हुई मोनिका बेदी की भिन्न भिन्न न्यूज़ आंखों के सामने घूम रही थी। अबू सलेम, अंडरवर्ल्ड , पूर्तगाल में अबू सलेम के साथ गिरफ्तारी, भारत प्रत्यार्पण, कोर्ट में पेशी के लिए जाती मोनिकाआदी समाचार लाइव टेलीकास्ट की भांती आंखों के सामने दिख रहे थे।
इसी बीच विमान उड़ान भर चुका था। करीब आधे घंटे बाद बेल्ट लगाने का साइन ऑफ़ हुआ और यात्रीयों को नाश्ता देने के लिए केबिन क्रू की हलचल शुरू हुई।
चहरे पर शांती और थकान के मिश्रित भाव, सामने से किसी के आने पर खिड़की से बाहर देखना आदि से लगा रहा था की मोनिका स्वयं को दूसरों की नज़रों से बचाना चाह रही है ।
एस्क्यूज मी ... आर यूं मोनिका ? मैंने पूछा
उत्तर में उसने मुस्कुराकर "हाँ" में गर्दन हिलाई।
मैंने अपना परिचय दिया। उसे अपना परिचय देने की जरुरत नहीं थी, पर उसने पर्याप्त रिस्पोंस देकर संवाद में रुची प्रदर्शित की।
एक आम हिंदुस्थानी की हैसीयत से मैंने मोनिका के बारे में समाचार माध्यमों में काफी पढा था पर यहाँ उसका जिक्र करना मूर्खता होती। और जब कोर्ट ने उसे बरी कर दिया हो तो किसी और को सफाई मांगने का अधिकार नहीं बचता है। सो मैंने उस ना विषय को ना छूना ही ठीक समझा ।
शुरुआती बातचीत में मोनिका ने बताया की आजकल वो फ़िल्म इंडस्ट्री में कम बेक की तैयारी कर रही है, और जल्द ही एक प्रोजेक्ट शुरू होने की उम्मीद है।
मेरे पूछने पर उसने बताया की कोर्ट से बरी होने के बाद वो जीवन में बहुत शांती महसूस कर रही है। जो हुआ बहुत बुरा हुआ और उसे में एक बुरे सपने की तरह भूल कर फ़िर से एक सामान्य जीवन जीना चाहती हूँ। कठिनाइयां अभी भी आ रही है, मीडिया पीछे पडा रहता है, पर मेरी कोशिशें जारी है।
आगे मोनिका कहती है की मेरे बुरे समय में मेरे परिवार और दोस्तों ने मुझे बहुत सपोर्ट किया और मेरा हौसला बढाते रहे, यही कारण है की मैं फ़िर से अपना करियर शुरू करने की हिम्मत कर रही हूँ।
बातों का सिलसिला करीब एक घंटे बाद ख़त्म हुआ, जब सीट बेल्ट लगाने का निर्देश हुआ । मुझे दिल्ली उतरना था, जबकि मोनिका इसी फ्लाईट से चण्डीगढ़ जा रही थी।
आजकल किसी भी पब्लिक फिगर की हर छोटी-बड़ी, महत्वपूर्ण या फालतू, सच या झूठ किसी भी ख़बर की जुगाली हर न्यूज़ चेनल कई दिनों तक करता रहता है, फ़िर भी कई पहलू सामने आने से रह जाते है।
मोनिका बेदी दोषी थी या नहीं, उसके अंडरवर्ल्ड से संबंध थे या नहीं ये टू मैं नहीं कह सकता, पर उसका फ़िल्म इंडस्ट्री में लौटने का हौसला देखकर सोचने लगा की एक २७ - २८ साल की लड़की, जिस पर अंडरवर्ल्ड से रिश्तों के आरोप लगे हों, गिरफ्तार होकर महीनों तक जेल में रही हो, हर अखबार- टीवी चेनल जिसके बारे में नेगेटिव ही लिखता हो, उसने कितना मानसिक त्रास सहा होगा? कई अपनों ने दूरियां बना ली होगी, किसी के मन में डर या किसी के मन में नफ़रत होगी।
ऐसी परिस्थिती से लड़ना किसी लड़की के लिए आसान काम नहीं हो सकता । आजकल छोटी छोटी परेशानियों से घबराकर या dipressed होकर drugs लेना या आत्महत्या करने की खबरें काफी सुनने को मिलाती है, ऐसे में मोनिका बेदी जैसी लड़की का फ़िर से काम पर लौटकर सामान्य जीवन जीने की हिम्मत करना निश्चित ही सराहनीय है।
मेरी शुभकामनाएं।